द गर्ल इन रूम 105–२८
'येसर' सफ़दर ने कहा। उनकी आवाज़ में नींद और गुस्सा मिले हुए थे। 'अंकल, मैं केशव बोल रहा हूं।"
*पता है। तुमने समय देखा है?" '3 बजकर 38 मिनट हो रहे हैं. अंकल।'
"क्या चाहते हो?"
'अंकल, जारा.. "क्या?"
'मिस्टर लोन जारा...' 'तुम्हें उसे भूलना होगा। मेरे ख्याल से मैंने कई साल पहले ही यह साफ़ कर दिया था। तुम नशे में हो क्या?"
हां, मैं नशे में तो था, लेकिन उस नशे का एक बड़ा हिस्सा अभी तक काफूर हो चुका था। 'अंकल, प्लीज़ मेरी बात सुनिए, यह बहुत ज़रूरी है,' मैंने ख़ुद को संभालते हुए कहा ।
'क्या?'
मैं उन्हें वह ख़बर नहीं सुना सका। 'क्या आप ज़ारा के हॉस्टल आ सकते हैं? अभी?'
"क्या? क्यों?"
प्लीज़, फ़ौरन आ जाइए। यह बहुत ज़रूरी है। मैं यहीं पर हूं।'
'क्या...
मैंने फ़ोन काट दिया। पता नहीं क्यों, लेकिन उसके पिता से फोन पर बात करने के बाद ही मुझे हक़ीक़त का अंदाज़ा हुआ था कि जारा मर चुकी है। कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएगी। नहीं, मुझे खुद को संभालना था।
मुझे अभी कुछ और कॉल करने थे।
'पुलिस, ' मैंने ज़ोर से कहा। पुलिस का नंबर क्या है?"
'100?' सौरभ ने कहा। "वह तो जनरल नंबर होता है। हमें लोकल पुलिस स्टेशन को फोन लगाना चाहिए?"
"यू मीन, हमें उन पुलिस वालों को फ़ोन करके यहां बुलाना चाहिए, जो अभी थोड़ी देर पहले हमारा पीछा
कर रहे थे? सौरभ ने कहा। 'शट अप' मैंने कहा। मैंने अपने फोन पर हौज़ खास पुलिस स्टेशन का नंबर गूगल किया और उन्हें फोन
लगाया।
पांच रिंग जाने के बाद किसी ने फोन उठाया।
'हौज़ ख़ास पुलिस, ' दूसरी तरफ से एक थकी हुई आवाज़ सुनाई दी।
'हमने आपको एक अपराध की सूचना देने के लिए फ़ोन लगाया है,' मैंने कहा । सौरभ ने सहमी हुई नज़रों से मेरी तरफ देखा ।
'तुम लोग कहां से बोल रहे हो?" 'आईआईटी दिल्ली। हिमाद्रि हॉस्टल रूम नंबर 105,' मैंने कहा।
'अपराध क्या है?'
'मर्डर। एक स्टूडेंट का ।' 'तुम कौन बोल रहे हो?" अब वह आवाज़ चौकन्नी हो गई थी।
"मैं केशव राजपुरोहित बोल रहा हूं। मैं यहीं पर आपका इंतज़ार कर रहा हूं। हिमाद्रि हॉस्टल के एंट्रेंस पर। ' 'विक्टिम कौन है और उससे तुम्हारा क्या ताल्लुक है?"
'जारा लोन । मैं उसका दोस्त और एक्स-आईआईटी स्टूडेंट हूं।' 'वहीं पर रहो, हम एक टीम भेज रहे हैं।'
मैंने कॉल काट दिया। सौरभ और मैंने एक-दूसरे की ओर देखा । 'नीचे चलकर वेट करें?" सौरभ ने कहा। वो किसी भी तरह इस रूम से बाहर निकल जाना चाहता था।
'हां,' मैंने कहा। मैं खड़ा हुआ और दरवाज़ा खोल दिया। कॉरिडोर खाली और अंधेरे से भरा था। सौरभ
कमरे
से बाहर चला आया। मैं भीतर ही रहा।
"क्या? अब चलो यहां से, सौरभ ने कहा।